बरेली। लीडर सिर्फ राजनीति में नहीं, समाज के हर क्षेत्र में पाए जाते हैं। सेवा, संस्कार, सरोकार से बड़ी लकीर खींचकर लीडरशिप कैसे हासिल की जाती है, ये इस समय नाथनगरी बरेली क्या, आसपास के जिले भी आंखों से देख रहे हैं। नाजों से पला, महंगे स्कूलों में पढ़ा एक नौजवान समाज के अंतिम पायदान पर खड़े वंचितों की सेवा में दिन-रात एक कर रहा है। युवाओं से दिल का रिश्ता जोड़ रहा है और हंसते-मुस्कराते रोज न जाने कितने जरूरतमंदों की जिंदगी की हर जरूरत पूरी कर सबकी आंखों का तारा बन रहा है। यथार्थ के धरातल पर काम उसके सिर्फ और सिर्फ सेवार्थ हैं। नाम उसका पार्थ है।
कुछ ही समय में पार्थ ने सबसे अलग अपनी पहचान खुद बनाई है। कई तरह की कसौटी बिठाने के बाद ये कलम आज ‘A YOUNG MAN.. ON A MISSION’ को लेकर कुछ लिखने को मजबूर हुई है तो इसके पीछे पढ़े-लिखे इस नौजवान सेवाभाव है। वैसे तो इस युवा के दादाश्री मि. के.के. गौतम यूपी पुलिस के तेजतर्रार अफसर रहे हैं और पिता स्मार्ट सिटी बरेली के स्मार्ट मेयर डॉ. उमेश गौतम हैं, लेकिन पार्थ गौतम अपने हिसाब से अपनी जिंदगी की इबारत खुद लिख रहे हैं और धीमे-धीमे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।
बरेली की समकालीन राजनैतिक पीढ़ियों में देखें तो अधिकांश घरानों के युवा या तो अपने काम-धंधे में रमे नजर आते हैं या सार्वजनिक मंचों पर रहते भी हैं तो वैसी चर्चा में नहीं आते हैं। वहीं, मिस्टर मेयर के सुपुत्र पार्थ गौतम अपने सेवार्थ कार्यों से समाज के दिलों में जगह बनाने की कोशिश करते दिखते हैं। पार्थ की वजह से पापा-पार्थ की जोड़ी ज्यादा ध्यान खींच रही है तो उसकी और भी कई वजह हैं। लिखने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि पापा-बेटे की ऐसी बेजोड़ कैमिस्ट्री कम ही देखने को मिलती है।
पार्थ गौतम कई मिथक तोड़कर अपने पापा के साथ खुले मंचों सेवा के संकल्प उठा रहे हैं, तो परिवार के विरोधी उनकी सक्रियता पचा नहीं पा रहे हैं और पापा के बाद बेटे की चुनावी जोर-आजमाइश के कहानी-किस्से उड़ा रहे हैं ! हालांकि, विरोधियों की चर्चा-परिचर्चा से बेफिक्र होकर पार्थ गौतम अपने लक्ष्य की ओर कदम धीमे-धीमे कदम आगे बढ़ा रहे हैं। पार्थ गौतम का लक्ष्य क्या है, ये सियासी हलकों में सबसे बड़ी चर्चा का विषय है। खुले मंचों से शानदार भाषण, युवा भीड़ के बीच उत्साही अपील, सेवा का अलग अंदाज और लगातार बढ़ती फैन फॉलोइंग पार्थ गौतम को दिल्ली-लखनऊ तक रेटिंग दिला रही है।
सभी जानते हैं कि पॉर्थ के पापा मेयर डॉ. उमेश गौतम बरेली में खास पॉलटिकल स्टाइल के लिए जाने जाते हैं। ये उमेश गौतम ही हैं, जिन्होंने बरेली नगर निगम में भाजपा को लंबी हार से उबारकर दो-दो बार कमल खिलाने का काम किया है। मि. गौतम के राजनैतिक फैसले, दिल्ली-लखनऊ के बड़े दरबारों में गहरी पैठ, इलेक्शन मैनेजमेंट, पब्लिक से मेल-मुलाकात के शानदार इंतजाम और सबसे बड़ी बात हमेशा सबसे हंसते-मुस्कराते मिलने की उनकी अदा ऐसी है, विरोधी कई मोर्चों पर उनके आगे खुद हारते दिखाई देते हैं। पापा की पाठशाला में पार्थ गौतम भी धीमे-धीमे सब सीख रहे हैं, लेकिन फिलहाल राजनीति के प्रथम अध्याय सेवा-सरोकार की क्लास पढ़कर आगे बढ़ रहे हैं। महाभारत के अर्जुन की तरह इस पार्थ का लक्ष्य क्या है, यही सोचकर विरोधी हैरान-परेशान हैं।
पार्थ गौतम के पार्थ फाउंडेशन ने शहर-कैंट में सेवा कार्य की मिसाल-बेमिसाल कहानी लिखने के बाद बिथरी-फरीदपुर की ओर रुख किया है तो विरोधी कैंप में टेंशन और ज्यादा बढ़ गई है । इस शुक्रवार को हुए इन्वर्टिस सभागार में हुए फाउंडेशन के कार्यक्रम में बिथरी-फरीदपुर इलाके के गणमान्य लोगों के साथ बड़ी संख्या में युवा जुटे तो सियासी हलकों में कई तरह के जोड़-गणित बिठाए जाने लगे। हालांकि, पापा की तरह हमेशा हंसते-मुस्कराते पार्थ गौतम फाउंडेशन के मंच पर सिर्फ और सिर्फ सेवा के संकल्प दोहराते नजर आए। पापा-पार्थ की जुगलबंदी विरोधियों की रातों की नींद हराम कर रही है। कथित रूप से बरेली के एक भगवाधारी एमएलए की, जो मि. मेयर नहीं, बल्कि पार्थ की वजह से कुछ ज्यादा ही टेंशन में बताए जा रहे हैं। … और तमाम अटकलों के बीच पार्थ आज्ञाकारी पुत्र और संस्कारी युवा के रूप में शिद्दत से अपना काम करते जा रहे हैं।