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संत कृपा : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता

बचपन के गिरधर नामधारी रामभद्राचार्य जी की 2 महीने की उम्र में चली गई थी दृष्टि, सब कुछ सुनकर सीखा, सनातन प्रसार-दिव्यांग सेवा में समर्पित किया जीवन

Shubham Thakurby Shubham Thakur
September 16, 2024
in Uncategorized
संत कृपा : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता
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चित्रकूट। सनातन धर्म में साधु-संतों को परम पूज्य माना जाता है और हर हिन्दू अपने ह्रदय में उनके प्रति असीम-अगाध आस्था रखता है। संत दर्शन की श्रृंखला में ‘Hindu News Of India/HNI’ प्रस्तुत कर रहा है धर्म चक्रवर्ती तुलसी पीठाधीश्वर, पद्मविभूषण से सम्मानित जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी स्वामी महाराज के बारे में ऐसी जानकारी, जिसके बारे में हर सनातनी को जानना-समझना जरूरी है। जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य बचपन में ही अंधता की चपेट में आने के बाद भी 22 भाषाओं के मर्मज्ञ हैं और वेद-पुराण, उपनिषद सहित सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों के जानकार हैं।

संत परिचय: रामभद्राचार्य का जन्म मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को ब्राह्मण परिवार, शांति खुर्द गांव, जौनपुर जिला उत्तर प्रदेश में हुआ था। बचपन में माता-पिता ने उनका नाम गिरिधर रखा था| दादा पंडित सूर्य बली मिश्र थे, जिनकी मौसी मीराबाई की सबसे बड़ी भक्त थीं। रामभद्राचार्य के माता का नाम शची देवी मिश्र और उनके पिता का नाम राज देव मिश्र था। मध्ययुगीन भारत में मीराबाई की रचनाओं में भगवान कृष्ण को गिरिधर नाम से सम्बोधित किया गया था, इसलिए रामभद्राचार्य को गिरधर नाम मिला था। रामभद्राचार्य जी जब 2 महीने के थे तो ट्रेकोमा बीमारी से उसी उम्र में उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। 24 मार्च 1950 को बीमारी ने उन्हें ऐसा घेरा कि इलाज की अच्छी व्यवस्था ना होने के कारण उनकी आंखों का इलाज नहीं हो पाया| घर वाले गिरिधर को लखनऊ के किंग जॉर्ज अस्पताल में भी ले गए थे, जहां उनका 21 दिन तक इलाज चला लेकिन आंखों की दृष्टि वापस नहीं लौटी| गिरिधर आंखों से देख नहीं पाने के पढ़ लिख भी नहीं सकते थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए ब्रेल लिपि का भी प्रयोग नहीं किया। अपने जीवन में जो भी सीखा है, उसे सुनकर सीखा है। वह शास्त्रियों को निर्देश देकर रचना करते आ रहे हैं|

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संत दर्शन : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता
बचपन का एक हादसा:
जून 1953 में रामभद्राचार्य बाल्यावस्था में थे, तो गांव में बाजीगर बंदरों का नृत्य दिखाने आता था। उसी शो को रामभद्राचार्य देखने गए थे। बंदर घुड़की से घबराकर सभी बच्चे अचानक भागने लगे तो रामभद्राचार्य जी सूखे कुएं में गिर गए। काफी समय वह उस कुएं में फंसे रहे। वहां से एक लड़की गुजर रही थी तो उसने गिरधर की आवाज सुनी। गांववालों की मदद से उसके बाद गिरधर को कुएं से बाहर निकाला गया।  किसी तरह उस हादसे में उनकी जान बच सकी थी। गिरधर ने अपनी शिक्षा का प्रारंभ दादाजी के सानिध्य में की थी, जो महाविद्वान थे। उनके पिताजी मुंबई में काम करते थे। दादाजी ही उन्हें हिंदू महाकाव्य  रामायण और महाभारत के कई प्रसंग और विश्राम सागर जैसी कई भक्ति रचनाएं सुनाते थे। गिरिधर जी ने मात्र 3 साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता अवधी भाषा में लिखी।  इस श्लोक मैं कृष्ण की यशोदा मां, कृष्ण को चोट पहुंचाने के लिए एक गोपी से झगड़ा कर रही हैं।

संत दर्शन : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता

गीता- रामचरितमानस कंठस्थ: गिरिधर जब 5 साल के थे, तभी उन्होंने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा से , मात्र 15 दिन में ही भगवत गीता को याद कर लिया था। उन्हें भगवत गीता के अध्याय और श्लोक संख्या के साथ कम से कम 700 श्लोक कंइस्थ हो गए थे | गिरिधर जब 7 वर्ष के थे, तो उन्होंने दादाजी की सहायत से 60 दिन में ही तुलसीदास रचित पूरे रामचरितमानस को याद कर लिया था। उसके बाद उन्होंने 1957 में रामनवमी के दिन उपवास करते हुए संपूर्ण महाकाव्य का पाठ किया था। 52 साल के बाद 30 नवंबर 2007 को दिल्ली में मूल संस्कृत पाठ और हिंदी टिप्पणी के साथ एक धर्म ग्रंथ का पहला ब्रेल संस्करण किया। बचपन में एक बार परिवार के लोग शादी समारोह में जा रहे थे, तो गिरधर को इसलिए वहां ले जाने से मना कर दिया था, ताकि नेत्रहीन होने की वजह से उन्हें अपशगुन न मान लें।

संत दर्शन : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता

जगद्गुरु की शिक्षा-दीक्षा: गिरिधर जी ने 17 साल की उम्र तक किसी भी स्कूल जाकर शिक्षा प्राप्त नहीं की। उन्होंने बचपन में ही रचनाएं सुनकर काफी कुछ सीख लिया था। परिवार के लोग चाहते थे कि गिरिधर कथावाचक बनें। पिताजी ने गिरधर को पढ़ाने के लिए कई ऐसे स्कूल में भेजने को चाहा, जहां नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाया जाता है लेकिन उनकी मां ने नहीं जाने दिया। मां का मानना था कि ऐसे बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता। बाद में गिरधर ने 7 जुलाई 1967 को हिंदी अंग्रेजी संस्कृत व्याकरण जैसे कई विषय पढ़ने के लिए गौरीशंकर संस्कृत कॉलेज में प्रवेश ले लिया। गिरधर ने सीखने के लिए ब्रेल लिपि भाषा का प्रयोग नहीं किया। जो भी सीखा है, सुनकर ही सीखा। कुछ दिनो बाद उन्होंने भुजंगप्रयत छंद में संस्कृत का पहला श्लोक रचा।  बाद में उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय में प्रवेश किया। 1974 में बैचलर ऑफ आर्ट्स परीक्षा में टॉप किया और फिर उसी संस्थान में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया।

संत दर्शन : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता

गिरधर बने जगद्गुरू : 30 अप्रैल 1976 को विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए गिरिधर को आचार्य की उपाधि मिली। उसके बाद गिरधर ने अपना जीवन समाज सेवा और दिव्यांगों की सेवा में समर्पित कर दिया। इसके बाद उन्हें रामभद्राचार्य का नाम-सम्मान मिला। 9 मई 1997 से गिरधर को सभी लोग रामभद्राचार्य के नाम से जानने लगे। गिरिधर ने 19 मई 1983 को वैरागी दीक्षा ली। 1987 में रामभद्र दास ने चित्रकूट में तुलसी पीठ नाम से सामाजिक सेवा और धार्मिक संस्थान की स्थापना की।  24 जून 1988 मे रामभद्र दास को काशी विद्वत परिषद द्वारा तुलसी पीठ में जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप चुना गया। उनका अयोध्या में अभिषेक किया गया, जिसके बाद उन्हें स्वामी रामभद्राचार्य के नाम से जानने लगे।

संत दर्शन : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता

राममंदिर केस में गवाही : स्वामी रामभद्राचार्य ने अयोध्या में राम मंदिर होने की 437 प्रमाण कोर्ट को दिए थे। गवाही में उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख किया। बाल्मीकि  रामायण के बाल खंड के आठवें श्लोक में श्री राम जन्म के बारे बताया, स्कंद पुराण का भी वर्णन किया। इतना ही नहीं, अथर्ववेद के दशम कांड के 31 वे द्वितीय मंत्र के बारे में स्पष्ट किया, जिसमें कहा गया है 8 चक्रों व नो प्रमुख द्वार वाली अयोध्या देवताओं की है और उसी अयोध्या में श्रीराम मंदिर है। स्वामी रामभद्राचार्य ने वेद में राम जन्म का स्पष्ट प्रमाण दिया गया है। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में स्पष्ट लिखा है की बाबर के सेनापति और दुष्ट लोगों ने राम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर मस्जिद को बनाया। कई हिंदुओं को मार डाला। तुलसीदास ने इस पर अपना दुख भी प्रकट किया है लेकिन वहां पर मंदिर तोड़े जाने के बाद भी हिन्दू राम की सेवा करते थे। वहीं साधु-संत सोते थे और प्रतीक्षा करते थे कि कभी तो रामलला की कृपा होगी। जगदगुरू रामभद्राचार्य की गवाही कोर्ट में अहम साबित हुई और श्रीराम मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ। आज अयोध्या धाम में भव्य श्रीराम मंदिर बन चुका है।

रामभद्राचार्य जी का आश्रम: स्वामी रामभद्राचार्य उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में तुलसी पाठ नामक नामक धार्मिक स्थल और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक हैं।

रामभद्राचार्य जी का आश्रम: स्वामी रामभद्राचार्य उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में तुलसी पाठ नामक नामक धार्मिक स्थल और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में ही रहते हैं। हिंदू धर्म में साधु-संतों का खास महत्व रहा है। सच्चे और तपस्वी साधु-संत अपने प्रवचनों और ज्ञान के भंडार से भक्तों को सही मार्ग बताकर उनके जीवन का उद्धार करते हैं। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने संतों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है-अब मोहि भा भरोस हनुमंता, बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता। जगदगुरू रामभद्राचार्य जी भी उन्हीं महान संतों में से एक हैं। यह शिक्षक भी हैं, संस्कृत के विद्वान भी हैं। दार्शनिक, लेखक, संगीतकार, गायक, नाटककार, बहुभाषाविद और 80 ग्रंथों के रचयिता भी हैं। जगदगुरू रामभद्राचार्य जी अपने असाधरण कार्यों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण को समर्पित किया है। नेत्रहीन होते हुए भी उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से कई सत्य भविष्यवाणियां कर चुके हैं।

बचपन के गिरधर नामधारी रामभद्राचार्य की 2 महीने की उम्र में चली गई थी दृष्टि, सब कुछ सुनकर सीखा, सनातन प्रसार-दिव्यांग सेवा में समर्पित किया जीवन

जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

  • जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज जब केवल 2 माह के थे, तब उनके आंखों की रोशनी चली गई थी. कहा जाता है कि, उनकी आंखें ट्रेकोमा से संक्रमित हो गई थी।
  • जगद्गुरु पढ़-लिख नहीं सकते हैं और न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं. केवल सुनकर ही वे सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं।
  • नेत्रहीन होने के बावजूद भी उन्हें 22 भाषाओं का ज्ञान प्राप्त है और उन्होंने 80 ग्रंथों की रचना की है।
  • 2015 में जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी को भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।
  • जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी रामानंद संप्रदाय के वर्तमान में चार जगद्गुर रामानन्दाचार्यों में से एक हैं. इस पद पर वे 1988 से प्रतिष्ठित हैं।

संत दर्शन : जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने बचपन में दृष्टि गंवाई पर हार नहीं मानी, वेद-पुराण सब कंठस्थ किए, 22 भाषाओं के बने ज्ञाता

Tags: hindu philosophyगीता-रामचरित मानसचित्रकूट धामजगद्गुरू रामभद्राचार्य जीतुलसी पीठपदमविभूषणप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीबहुभाषाई ज्ञातारामानंद संप्रदायरामानंदाचार्यवेद-पुराण ममर्गसंत दर्शनसनातन सेवा
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